अजब गजब: क्या पानी में तैरने वाला यह पत्थर है रामसेतु के समय का? जानिए वैज्ञानिकों का जवाब

  • वैज्ञानिकों ने किया बड़ा दावा
  • पानी में तैरने वाला पत्थर को बताया रामायण के काल का
  • रामसेतु के निर्माण कार्य में प्रयोग में लिया गया था पत्थर

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-17 20:11 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रामायण में रावण से माता सीता को छुड़ाने के लिए और लंका पहुंचने के लिए भगवान श्रीराम की वानर सेना ने समुद्र पर रामसेतु का निर्माण किया था। वानर सेना में नल और नील नाम के वानर पत्थरों पर जय श्रीराम लिखकर समुद्ध में फैंकते थे। इसके बाद समुद्र में पत्थर तैरने लग जाते थे। ऐसे ही एक मामले मध्यप्रदेश के सागर जिले से सामने आ रहा है। यहां पर एक पत्थर को मध्यप्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्विद्यालय स्थित जियोलॉजिक म्यूजियम में रखा गया है।

इस पत्थर को लेकर सागर यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स का दावा है कि इसी तरह के पत्थरों का प्रयोग रामायण में रामसेतु बनाते समय किया गया था। ईस्ट अफ्रीका में पाया जाना वाला यह पत्थर जियोलॉजिकल इंडिया सर्वे के आरके चतुर्वेदी अपने साथ इसे सागर लेकर आए थे। आरके चतुर्वेदी सागर यूनिवर्सिटी के सीनियर एल्यूमिनी भी रह चुके हैं। बताया जाता है कि पिछले 20 साल से यह पत्थर वेस्ट म्यूजियम में रखा हुआ है।

इस वजह से तैरता है पत्थर 

पत्थर को लेकर जियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर हेरल थॉमस ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में रोचक जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि यह एक तरह का फ्लोटिंग पत्थर है। इन पत्थरों के अंदर लावा से निकलने वाली एयर और बलून पाई जाती है। इस दौरान लाखों सालों तक हवा निकलने की वजह से पत्थरों में छेद हो गए हैं। ऐसे में इनकी डेंसिटी पानी में घट जाती है। जिससे पत्थर पानी पत्थर में तैरने लगते हैं। उन्होंने दावा किया कि यह पत्थर लगभग 65 मिलियन साल पुराना होगा।

पत्थर को लेकर चल रही रिसर्च

रामसेतु में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों के बारे में प्रोफेस हेरल थॉमस का कहना है कि यह पत्थर लाइमस्टोन और कोरल ड्रीफ से बनाया गया था। उन्होंने कहा कि उस समय फ्लोटिंग स्टोन या प्यूमिस को उपयोग में लिया गया होगा। हालांकि, यह कहना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा कि इन पत्थरों का इस्तेमाल नहीं किया गया होगा। इस सेतु पर 1480 के दौरान लोग पदल यात्रा करते थे। मगर, तेज आंधी और तूफान की वजह से सेतु पानी में डूब गया। इस वजह से उसके कुछ हिस्से भी बीच से टूट गए हैं। यदि कार्बन डेंटिंग पर नजर डालें तो रामसेतु 7000 साल पुराना होगा। जो कि रामयाण काल के समय का हो सकता है। इसे लेकर कुछ स्टडी और रिसर्च भी की जा रही है। ताकि कई चीजों के बारे में पता लगाया जा पाए।

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